Tuesday, October 26, 2010
राजनीति में पत्थरबाज
राजनीति में अपशब्द
Saturday, January 9, 2010
सतत प्रेम की अनंत गाथा
सतत प्रेम की अनंत गाथा
जिसका न कोई आदि,
ना कोई अंत |
मानो तो सच है
नहीं तो मनगढ़ंत ||
कोशिश थी ना हो इसका आदि,
अगर न होता आदि
न ही होता अंत |
और न ही झेलना पड़ता NIOH वालों को,
मुझ जैसे अनाड़ी कविओं को जीवन पर्यंत ||
लम्बी लम्बी हांकना करते हैं अब बंद,
यहीं होता है अनंत गाथा की तुच्छ भूमिका का अंत ||
आरम्भ करूँ कहाँ से?
धुंधली झिलमिल से, या
भावनाओ के समंदर किनारे
पड़ी रेत की तस्वीर बेजान से ||
प्रेम तो प्रेम होता है,
प्रेम होता है शुद्ध अंतःकरण से
न कि छोटा कद, बढती उम्र,
लम्बे नाक कान से |||
रही बात NIOH की तो
एडमिशन के साथ बना लो "pair" |
"Pair" के बिना नहीं होता यहाँ,
लडको का "character"......"Fair" ||
यदि न हो "pair"
"Library" में बगल वाली खाली रह जाये "Chair"
तो समझ लो भैया ...
"Course" खत्म होने पर "character certificate" लेके,
घूमना होगा "totally Unfair" ||
जो दूरदर्शी थे उन्होंने
Fresher के दिन से ही,
"Pair" वाला "Alumni" बनने का सोच लिया|
मन भंवरा परिवीक्षाधीन फूलों के पीछे,
डोलने का मन बना लिया ||
हर “Friday” …. Good Friday होता
Saturday, Sunday के Programme लिए
Batch mate के अतुलित विचारों का जाम चलता|
कुछ ईर्ष्यालु होते हैं आस-पास
दिल दिमाग का ना देता साथ|
ईर्ष्यालु की ईर्ष्या भी होती है जेन्युन
सुन्दर सुशील वर्ण के बावजूद भी,
नहीं मिल पाती है ट्यून ||
दिल भयंकर काम पर लग गया,
वेलेंटाईन दे का शुभ मुहूर्त निकाल ||
प्रपोजल रिजेक्ट भी हुआ तो कुछ नहीं,
दूसरी पर ट्राय करेंगे
नहीं रहेगा इसका मलाल ||
कभी वॉलेट लेकर
चाईनीज चटपटा रोड छाप व्यंजन खिलाने को
तो कभी मचल उठते देने को
आर्चिज का कार्ड,
बिना किसी खास अवसर||
कार्ड, पार्टी, पार्क के चक्कर में,
घर से साल में ४ बार “Annual fees” मँगा लिया |
चलो कोई बात नहीं
बात बन गई तो,
समझो सब कुछ ब्याज समेत
फिर से पा लिया ||
मामला फिट हो गया
तो दोनों हाथ में लड्डू
फ्री काल वाले फोन से
बनाते रहेंगे एक दूसरे को बुद्धू ||
फोन पर बात करते देख
बगुला भगत सोचते यही ,
दोनों के बीच हो रही है बातें मीठी-मीठी ||
मीठी-मीठी बातों की कल्पना,
वास्तविकता से मेल खाती नहीं |
जो बातें होती है मीठी,
सर्वथा मीठी होती नहीं |
कभी-कभी डेढ़ रूपये की चाय में
चीनी होता नहीं||
रोज रोज कोई नयी टोपिक मिले
तभी कोई मीठी बात हो|
ऐसे में कड़वी चाय की बात कर
“चीनी कम” में मीठेपन का,
खुद को एहसास दिला दो ||
“चीनी कम” की बात चली तो
बताता चलूँ
इस तरह के फिल्मों का आजकल
रिलीज होना आम हो गया,
“बुजुर्गियत” का “प्रेम” से मिलन सरे आम हो गया ||
“बुजुर्गियत” का अर्थ बढती उम्र से न निकालें
NIOH की बात करें तो
सेकेंड ईयर से ही होने लगते हैं लोग बूढ़े |
Internship तक कब्र में चले जाते हैं पुरे ||
शुक्र हैं जोगर्स पार्क जैसे फिल्मो का
अब तो स्कोप खुल गया,
कब्र में पैर लटकाए बूढों का|
यदि हालात यही रहे तो
समझो लो.........
दिन लद जायेगा “जवानों का “ ||