Sunday, June 24, 2007

ससुर जी उवाच

डरते झिझकते
सहमते सकुचाते
हम अपने होने वाले
ससुर जी के पास आए,बहुत कुछ कहना चाहते थे
पर कुछ बोल ही नहीं पाए।

वे धीरज बँधाते हुए बोले-बोलो!
अरे, मुँह तो खोलो।
हमने कहा-जी. . . जी जी ऐसा है वे बोले-कैसा है?
हमने कहा-जी. . .जी ह़म
हम आपकी लड़की काहाथ माँगने आए हैं।

वे बोलेअच्छा!हाथ माँगने आए हैं!
मुझे उम्मीद नहीं थी
कि तू ऐसा कहेगा,
अरे मूरख!माँगना ही था तो पूरी लड़की माँगता
सिर्फ़ हाथ का क्या करेगा?

Monday, June 11, 2007

उनका मज़ा

हमारे पेशेंस को आज़माकर, उन्हें मज़ा आता है
दिल को खूब जलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

खूब बातें करके जब हम कहते हैं "अब फ़ोन रखूँ?"p
बैलेंस का दिवाला बनाकर, उन्हें मज़ा आता है।

उन्हें मालूम है नौकरीवाला हूँ, मिलने आ नहीं सकता
पर मिलने की कसमें खिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम तो यूँ ही नशे में हैं, हमें यूँ न देखो
मगर जाम-ए-नैन पिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम खूब कहते हैं शादी से पहले यह ठीक नहीं
सोये अरमान जगाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वैसे खाना तो वो बहुत टेस्टी बनाती हैं
मगर खूब मिर्च मिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वो जानती हैं, हमारी कमज़ोरी क्या है, तभी
प्यार ग़ैर से जताकर, उन्हें मज़ा आता है।

सपना

मेरा जीवन कितना अपना

मेरा जीवन जैसे सपना

सपना जिसमे रंग नहीं है

कोई मेरे संग नहीं है

एक अकेली मेरी आँखे

एक अकेला मेरा सपना

ऐसा जिसमे मै ही मै हूँ

ऐसा जिसमे इन्तजार है

ऐसा जिसमे हार नहीं है

लेकिन इसमें प्यार नहीं है

काश ये सपना सच न होता

काश ये सपना सच न होता

काश मै ये सब नहीं देखता

लेकिन गर ये सब न होता

जो होता वो कब न होता

जो लिखता हूँ

जो करता हूँ

जैसा हूँ मै

अब ना होता !