Friday, January 30, 2009

कुछ कहो न......


कुछ पल साथ चले तो जाना
रास्ता है जाना पहचाना .

सांसो को सुर दे जाता है
तेरा यूँ सपनो में आना

मैंने जतन किये थे लाखों
मन ने मीत तुम्ही को माना

अब तो हाथ थाम लेने दो
और कहो ना .. ना ना
कुछ कहो न......

सौ जनम का साथ अपना
सांस का धरकन से जैसे
आस का जीवन से जैसे

कटे साल सोलह कैसे
मधु को लालायित भंवरा के जैसे

झूठ के परदे न ढूढो
सच कहो ना
कुछ कहो ना ..

एक दूजे के लिए हम,
हाथ में कंगन के जैसे,
प्यास में सावन के जैसे,
रूप को दर्पण के जैसे,
भक्त को भगवान के जैसे.
झील सी सिमटी न बैठो ,
कुछ बहो ना .
कुछ कहो न ..

जानता हूँ थक गयी हो
उम्र के लम्बे सफ़र से ,
सांप से दस्ते शहर से,
आस से और आंसुओं से,
भीड़ के गहरे भंवर से.
वक़्त फिरता है सुनो न ,
इतना डरो न .
कुछ कहो न.....